ख़ुत्बा हज्जतुल विदा इस्लाम के पैगंबर हज़रत मुहम्मद (सल्ल. अल्लाहु अलैहि वसल्लम) का अंतिम और सबसे महत्वपूर्ण भाषण है, जिसे उन्होंने 10 हिजरी (632 ईस्वी) में अपने आखिरी हज के मौके पर मक्का के पास अरफ़ात के मैदान में दिया था। इसे इस्लामी इतिहास में एक महत्वपूर्ण दस्तावेज़ माना जाता है, जो इस्लाम के मूल सिद्धांतों, मानवाधिकारों, सामाजिक न्याय और नैतिकता पर आधारित है।
इस ख़ुत्बे के मुख्य बिंदु इस प्रकार हैं:
तौहीद:
यह ख़याल हमेशा रखो कि अल्लाह के सिवा कोई माबूद (पूज्य) नहीं है। जो कुछ भी तुम्हें इस दुनिया में मिला है, वह अल्लाह की तरफ से है। उसी ने तुम्हें बनाया और जो भी तुम्हारे पास है, वह उसी की देन है।
मसावात (समानता):
अल्लाह ने इंसानों को बराबरी पर पैदा किया है। कोई भी इंसान रंग, जात, नस्ल या क़बीले की वजह से दूसरे से बड़ा नहीं है। इस्लाम में सब इंसान बराबर हैं, चाहे वे अमीर हों या गरीब। इंसानों की इज्जत और उनके हक़ को पहचानो। कोई भी इंसान, चाहे वह किसी भी वर्ग से हो, सम्मान और इज्जत का हक़दार है।
ख़ुद एहतसाबी:
पैग़म्बर मोहम्मद (स.अ.व.) ने फरमाया कि हर इंसान को अपने कर्मों का जवाब देना होगा। तुम्हें अपनी ज़िम्मेदारियों और अमानतदारी को निभाना होगा ताकि अल्लाह के सामने सच्चाई के साथ पेश हो सको।
अफ़्व-ओ-दरगुज़र (माफ़ी देना):
बदला लेने के बजाय माफी देना बेहतर है। किसी के गुनाह को माफ कर देना ही इस्लाम की तालीमात (शिक्षाएं) हैं। पैग़म्बर ने भी इस्लाम के दुश्मनों को माफ कर दिया, जब वे उनके साथ सुलह करने आए।
तहफ़्फ़ुज़-ए-जान, माल और इज्जत:
इस्लाम इंसान की जान, माल और इज्जत की सुरक्षा की शिक्षा देता है। किसी की जान लेना, उसकी इज्जत पर हमला करना, या उसके माल को नुकसान पहुँचाना हराम (निषिद्ध) है।हक़ूक़-ए-ज़ौजीन (पति-पत्नी के अधिकार): इस्लाम में पति और पत्नी के अधिकार को बहुत महत्व दिया गया है। दोनों को एक-दूसरे का सम्मान करना चाहिए और अपने-अपने अधिकारों की रक्षा करनी चाहिए।
बाप की हक़ूक़:
ख़बरदार! अब तुम्हारे ऊपर खुदाई की ज़िम्मेदारी है कि अपने बाप का ख्याल रखो। अगर बाप को तकलीफ़ हुई, बेटा बाप के लिए उठे और बाप को आराम पहुँचाए। वह अपने भाई से कुछ ले सकता है, लेकिन बाप की ख़ुशी को ध्यान में रखते हुए, बाप से सवाल न करे। उसकी ख़ुशी का ख़्याल रखे और उसके साथ अच्छा बर्ताव करे।
इस्लामी भाईचारा:
देखो! हर मुसलमान दूसरे मुसलमान का भाई है। इस्लाम में भाईचारा है
ख़ादिमों के हक़ूक़:
अपने ख़ादिमों के हक़ का ध्यान रखें। उनका भी इंसानों का दर्जा है, उन्हें दूसरों से बेहतर रखो; जैसा तुम खुद के लिए पसंद करते हो, वैसा ही उनके लिए भी पसंद करो। उन्हें उनके हक़ से वंचित न रखो।
अमानत की अदायगी:
देखो! तुमसे कोई अमानत कभी वापस नहीं मांगी जाएगी, मगर वह अमानत जिसे देने का तुमसे वादा लिया गया है, वह तुमसे मांगी जाएगी। तो उन अमानतों को ईमानदारी के साथ अदा करो।
इस्लाम के स्तंभ:
देखो! अपने रब की इबादत को पूरा करने के लिए पाँचों वक़्त की नमाज़ अदा करो। रमज़ान के रोज़े रखो, ज़कात दो, और अपनी इस्लामी ज़िम्मेदारियों को दिल से पूरा करो। अपने घर की और अपनी बाहरी ज़िम्मेदारियों का ध्यान रखो, ताकि अल्लाह तुम्हें जन्नत में दाखिल कर दे।
अल्लाह की हदों का सम्मान:
अल्लाह की हदों का सम्मान करो। देखो! रमज़ान में जो कुछ होता है, उसमें अपने दिल को अल्लाह की ओर झुकाओ। जिन कामों से बचने का हुक्म अल्लाह ने दिया है, उनसे बचो। और जान लो कि अल्लाह की नाफरमानी करने वालों के लिए दोज़ख़ है।
फ़र्ज़-ए-तब्लीग:
जो लोग यहाँ मौजूद नहीं हैं, उन्हें बुलाओ। उन्हें वह पैग़ाम पहुँचाओ जो तुमसे पहले अल्लाह के रसूल ने तुम तक पहुँचाया। अपने आस-पास के लोगों को तब्लीग़ करो ताकि समाज में भलाई फैले और लोग अल्लाह की राह पर चल सकें।
शहादत-ए-हक़:
देखो! तुम्हारे बाद कोई नहीं आएगा जो तुम्हारी जगह लेगा। अगर तुमसे पहले वाले अल्लाह के आदेशों की शहादत देकर इस धरती से विदा हुए, तो अब तुम्हारी बारी है कि तुम अपने धर्म की हिफाज़त करो। तुमसे क़यामत के दिन अल्लाह पूछेगा कि जब तुमसे पहले वाली उम्मतों के लोग मर गए तो तुमने उनकी तरह कौन से काम किए?
अल्लाह के रसूल (स.अ.) ने फ़रमाया: “कमाल की शहादत दी है।” और तुम्हें वही जिम्मेदारी दी गई है। अल्लाह हमें हिदायत दे कि हम अपनी जिम्मेदारियों को निभा सकें। “अल्लाहु अकबर! अल्लाहु अकबर! अल्लाहु अकबर!!!”