क्या सोनिया गांधी अपने अरमानों का गला घोंट कर राहुल गांधी की जगह ममता बनर्जी को विपक्ष के प्रधानमंत्री पद के लिए साझा उम्मीदवार बनाने पर सहमत होंगी या फिर ममता बनर्जी अपने सपनों को भूल कर राहुल गांधी को प्रधानमंत्री बनाने पर सहमत हो जायेंगी?
गुजरात सियासत के लिए खास रिपोर्ट
नई दिल्लीः देशभर में भाजपा के सामने जंग का एलान करने के बाद ममता दीदी अब दिल्ली में राष्ट्रीय महत्वकांक्षा के लेकर आई हुई है। पांच दिन के दौरे में वोह सोनिया गांधी, प्रशांत किशोर को मिलेगी। ममता दूसरे विपक्षी नेताओं को भी मिलेगी। राजकीय पंडितो के अनुसार ममता आज सबसे मजबूत विपक्षी नेता लग रही है।
ममता और सोनिया गांधी के मीटिंग की पृष्ठभूमि की पूरी तैयारी हो चुकी है. इस बीच ममता बनर्जी का एक बयान भी आया था कि उनका लक्ष्य सिर्फ 2024 मे बीजेपी को हराना है, वह प्रधानमंत्री पद की इच्छुक नहीं हैं, जो गले से नीचे नहीं उतरता है क्योंकि यह सचाई से परे है. सबसे बड़ा सवाल जो सामने हैं कि क्या सोनिया गांधी अपने अरमानों का गला घोंट कर राहुल गांधी की जगह ममता बनर्जी को विपक्ष के प्रधानमंत्री पद के लिए साझा उम्मीदवार बनाने पर सहमत होंगी या फिर ममता बनर्जी अपने सपनों को भूल कर राहुल गांधी को प्रधानमंत्री बनाने पर सहमत हो जायेंगी?
2024 के लोकसभा चुनाव को अभी ढाई साल से ज्यादा का समय है, लेकिन विपक्ष ने मोदी को हराने की भूमिका अभी से तैयार करनी शुरू कर दी है. ममता बनर्जी इसमें सबसे आगे हैं क्योंकि उन्हें लगता है कि वह 2024 के आम चुनावों में विपक्ष की ओर से पीएम उम्मीदवार बन सकती हैं और इसके लिए उन्होंने बैटिंग भी करनी शुरू कर दी है.
पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी (West Bengal CM Mamata Banerjee) का बहुप्रतीक्षित तीन दिवसीय दिल्ली दौरा आज से शुरू हो रहा है. 27 तारीख को वह प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी (Prime Minister Narendra Modi) से मिलेंगी और अपनी मांगों का पिटारा खोलेंगी. मोदी से मिलने से पहले और मोदी से मिलने के बाद ममता बनर्जी का दिल्ली में काफी व्यस्त कार्यक्रम रहने वाला है. प्रमुख विपक्षी दलों के नेताओं से उनके मिलने की योजना है. पर सबसे महत्वपूर्ण ममता बनर्जी की कांग्रेस पार्टी (Congress Party) अध्यक्ष सोनिया गांधी (Sonia Gandhi) के साथ मुलाकात होगी. कहने को तो यह एक राष्ट्रीय दल और एक क्षेत्रीय दल के अध्यक्षों की मीटिंग है, पर इस मीटिंग से इस बात का संकेत मिलना शुरू हो जाएगा कि 2024 के आम चुनावों के लिए विपक्ष का क्या रुख रहने वाला है.
इसी तरह की एक मीटिंग लगभग 22 साल पहले हुई थी जिसने देश की तकदीर और तस्वीर बदल दी थी और वह मीटिंग इतिहास के पन्नों में दर्ज हो गई थी. बात मार्च 1999 की है. जनता पार्टी के अध्यक्ष डॉ सुब्रह्मण्यम स्वामी ने नयी दिल्ली के अशोका होटल में एक चाय पार्टी का आयोजन किया था. जब दिल्ली की चाय की चुस्की लगाने चेन्नई से AIADMK नेता जे. जयललिता आईं तो 10 जनपथ से कांग्रेस की नवनियुक्त अध्यक्ष सोनिया गांधी का आना तो बनता ही था. तमिलनाडु में उन दिनों DMK की सरकार होती थी और केंद्र में अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में एनडीए की.
DMK उन दिनों एनडीए में होती थी. चाय खत्म होते-होते विपक्ष की राजनीतिक रूपरेखा तैयार हो गयी. स्वामी के तर्क ने जयललिता और सोनिया गांधी दोनों को जांचा कि अगर कांग्रेस और AIADMK साथ हो जाए, लालू और मुलायम भी जुड़ जाएं तो केंद्र में विपक्ष की सरकार बन सकती है. वामदलों का साथ तो मिलना ही था, क्योंकि बीजेपी से उनकी विचारधारा की लड़ाई थी. लोकसभा में वाजपेयी सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाया गया और वाजपेयी सरकार एक मत से गिर गयी. 13 का आंकड़ा वाजपेयी के इर्दगिर्द घूमता दिख रहा था. 1996 में पहली बार 13 दिन प्रधानमंत्री रहने के बाद वाजपेयी ने इस्तीफा दिया था और दूसरी बार 13 महीने सरकार चलाने के बाद. स्वामी का मकसद सिर्फ वाजपेयी सरकार को गिरना ही था. विपक्ष की सरकार बने या ना बने इसमें स्वामी को कोई खास दिलचस्पी नहीं थी ना ही कोई योजना. विपक्ष सरकार बना नहीं पायी, वाजपेयी कार्यकारी प्रधानमंत्री बने रहे. कारगिल का युद्ध हुआ और राष्ट्रवाद के जोश में वाजपेयी के नेतृत्व में एनडीए पूर्ण बहुमत से चुनाव जीत कर आयी.
सबसे दिलचस्प बात है कि सोनिया गांधी और जयललिता की बनती नहीं थी. 1998 के लोकसभा चुनाव में जयललिता सोनिया गांधी के इटालियन मूल और उनके भारत के प्रति समर्पण पर सवाल उठाती रही थीं. पर जब दोनों मिलीं तो ऐसे जैसे दो सहेलियां एक ज़माने के बाद मिली हों. मिलाने वाले स्वामी थे, जिन्होंने बाद में जयललिता को भ्रष्टाचार के मामले में जेल भिजवा कर ही दम लिया और अब सोनिया गांधी के सर पर भी स्वामी द्वारा दायर नेशनल हेराल्ड केस की तलवार लटकी हुई है. अगर स्वामी जीत गए तो सोनिया गांधी और उनके पुत्र राहुल गांधी को जेल की सजा भी हो सकती है।
27 जुलाई को सोनिया और ममता की मीटिंग से केंद्र की सरकार को कोई खतरा नहीं है, क्योंकि केंद्र में मोदी सरकार प्रचंड बहुमत से सत्ता में है. 1999 और 2021 के बीच एक समानता जरूर है कि अब प्रशांत किशोर स्वामी की भूमिका में हैं. इसे संयोग ही कहा जा सकता है कि वाजपेयी स्वामी को राजनीति में ले कर आये थे और स्वामी वाजपेयी की जान के पीछे पड़ गए थे, प्रशांत किशोर को चुनावी राजनीतिज्ञ बनने का पहला अवसर गुजरात के मुख्यमंत्री होते हुए नरेन्द्र मोदी ने दिया था और अब प्रशांत किशोर मोदी के पीछे हाथ धो कर पड़े हए हैं.
पश्चिम बंगाल चुनाव के बाद प्रशांत किशोर ने लाइव टीवी पर घोषणा की थी कि वह चुनावी राजनीति के काम को अलविदा कह रहे हैं. पर उनकी कंपनी का कॉन्ट्रैक्ट ममता बनर्जी के साथ 2024 के आम चुनाव तक बढ़ा दिया गया है और प्रशांत किशोरे ने अब पंजाब के मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह को भी चुनाव जीताने का ठेका ले लिया है. प्रशांत किशोर की पूरे कांग्रेस आलाकमान से बैठक हो चुकी है, यानि सोनिया गांधी, राहुल गांधी और प्रियंका गांधी के साथ. शरद पवार से भी वह तीन बार मिल चुके हैं और विपक्षी दलों की पवार के घर पर एक बार बैठक भी हो चुकी है. प्रशांत किशोर का मिशन है 2024 में दीदी को पीएम बनाना, जो संभव नहीं होगा अगर कांग्रेस पार्टी का इसमें साथ ना हो तो
2024 के चुनाव में अभी ढाई साल से भी ज्यादा का समय है. इस बीच बहुत कुछ बदल सकता है. विपक्षी एकता की कसौटी अगले साल से ही शुरू हो जायेगी जब साल के शुरुआत में पांच राज्यों – पंजाब, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, गोवा और मणिपुर में चुनाव होगा और साल के अंत में हिमाचल प्रदेश और गुजरात में. क्या सभी गैर-बीजेपी दल इकट्ठे हो कर बीजेपी को इन सभी राज्यों में साझा चुनौती देने में सफल हो पाएंगे या फिर बहुचर्चित विपक्षी एकता एक दिवा स्वप्न बन कर रह जाएगा जिसका अंत 2022 में ही होगा।
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