क़ुरआन को याद करने वाले बच्चे क्यों आईएएस नहीं बन सकते? सुधार की जरूरत

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नई दिल्ली, क़ुरआन को याद कर लेने वाले बच्चे क्यों आईएएस नहीं बन सकते ? सुधार की जरूरत ” यह बात जुमा में लाल मस्जिद से खिताब करते हुए मौलाना मुख्तार अशरफ ने कहीं, उन्होंने कहा कि  हमारे छोटे छोटे बच्चे मदरसों में बहुत कम सहूलियतों के दरमियान मेहनत और अल्लाह के फजल से क़ुरान याद कर लेते हैं तो यह दुनियावी किताबों की क्या हैसियत है अगर बच्चों को एनसीईआरटी की किताबों का मुताला कराया जाए तो किसी भी इम्तेहान को पास कर सकते हैं क्योंकि क़ुरआन करीम की रोशनी से उनके ज़हन और दिल दोनों रोशन है लेकिन अफसोस की हम एक हाफ़िज़ के तौर पर एक बेरोजगार सौंप रहे हैं यह कड़वी सच्चाई है।
मौलाना ने कहा अगर वक़्त रहते इस पर गौर नहीं किया गया तो हमारी तबाही कोई नहीं रोक सकता ,जिस कौम ने अपने इल्मो फन का लोहा मनवाया था आज वह इल्म से दूर नजर आती है,उन्होंने कहा हमने मस्जिद को अल्लाह का घर कहकर उसे सिर्फ नमाज़ पढ़ने की जगह बना दिया और सीरते रसूल से फिर गए क्योंकि इस्लाम में मस्जिद उसकी दरगाह भी है ,अस्पताल भी,और पार्लियामेंट भी लेकिन अफसोस हमने इन इमारतों को महदूद कर दिया और सिर्फ नमाज़ अदा करने की जगह बना कर रख दिया।
मौलाना ने कहा अल्लाह क़ुरआन में इरशाद फरमाता है  हमने जिन और इंसान को अपनी इबादत के लिए पैदा किया तो  बताइए अल्लाह कह रहा है कि तुम्हे सिर्फ इबादत के लिए पैदा किया गया और रसूले खुदा बताते हैं की मेरे तरीके पर किया गया हर काम इबादत है ,मस्जिद इबादतगाह है तो मसला साफ हो गया कि मस्जिद का इस्तेमाल क्या है।
उन्होंने लोगों से कहा मस्जिद में अस्पताल खोलिए ,कोचिंग खोलिए खूब नमाज़ पढ़िए और ज़िक्र कीजिए हमारे बच्चों में सलाहियत है उसे बर्बाद मत कीजिए हमारे पास सब मौजूद है बस नेक नियति से शुरवात की जरूरत है।