By Abdul Hafiz lakhani Ahmedabad
लोक शिक्षा प्रणाली के लिए गुजरात में शिक्षा आंदोलन को मजबूत करने, असमानता के खिलाफ़ कार्यवाही का वैश्विक सप्ताह कार्यक्रम के तहत आज अहमदाबाद में एक दिवसीय परामर्श का आयोजन आरटीई फ़ोरम गुजरात ने किया| परामर्श में कच्छ, मोरबी, साबरकांठा, अरवल्ली, मेहसाना, गांधीनगर, खेड़ा, पंचमहल, आनंद, अहमदाबाद, वलसाड, दाहोद ज़िलों से आए शिक्षा अधिकार कार्यकर्ताओं ने भाग लिया| आज के परामर्श में सामाजिक समावेश की प्रक्रिया दलित,आदिवासी, अल्पसंख्यक, महिला, विकलांगजनों की दृष्टि से देखने की कोशिश की गयी|
सभी ज़िलों से आए साथियों ने बताया कि अभी तक स्कूल में पूरे क्लास रूम, इस्तेमाल लायक़ शौचालय, सुरक्षित वातावरण, स्कूल में शैक्षणिक वातावरण, विषय वार शिक्षकों की भारी कमी की बात सभी ने की|
प्रेस को संबोधित करते हुए मुजाहिद नफ़ीस ने कहा कि गुजरात सरकार को शिक्षा के क्षेत्र में काम करने की बहुत ज़रूरत है| गुजरात सतत विकास लक्ष्य (SDGs) के लक्ष्य 5 लिंग (जेंडर) समानता में 100 में से 31 अंक मिले हैं, भूख शून्य (ज़ीरो हंगर) में 49, गरीबी मुक्ति (नो पोवेर्टी) में 48 बताता है कि सरकार सामाजिक असमानता को दूर करने के लिए प्रतिबद्ध नहीं है| गुजरात में भाजपा का शासन बीते 22 सालों से है लेकिन अभी भी बच्चों के प्रति अपराधों में लगातार वृद्धि हुई है 2012 में जहां ये केस 1327 थे वो 2016 में बढ़कर 3637 हो गए वहीं मामलों में दोष सिद्ध करने की दर 2016 में मात्र 12% थी जो कि राष्ट्रीय दर 31% से काफी कम है| गुजरात में 5 साल से कम आयु के 38.5% बच्चे कुपोषित हैं| ऐसे में सरकार को चाहिए के वो पूर्व प्राथमिक से लेकर मध्यमिक तक शिक्षा के अधिकार क़ानून के दायरे को बढ़ाये| राज्य में स्कूल मर्जर के नाम पर 5223 स्कूल को बंद करने की साज़िश सरकार द्वारा की जा रही है| सरकार एक तरफ ज़िलों में ईमेल से पत्र भेजकर स्कूल का सर्वे करा रही है इस पत्र को अगर आप ध्यान से देखेंगे तो इस मर्जर का सबसे ज़्यादा खराब प्रभाव आदिवासी, दलित, अल्पसंख्यक विस्तारों व कच्छ जैसे विशाल भौगोलिक क्षमता वाले इलाक़ो पर पड़ेगा, वहीं आरटीआई के जवाब में ऐसी किसी भी प्रक्रिया को सिरे से नकार रही है इससे सरकार की जनविरोधी मंशा का साफ पता चलता है|
हम मांग करते हैं कि सरकार केंद्र के हिस्से को मिलकर शिक्षा पर कुल जीडीपी का 6% ख़र्च करे| परामर्श में देश में शिक्षा पर ख़र्च पर एक फ़ैक्ट शीट भी जारी की गयी जिससे पता चलता है कि देश में अभी भी 15-18 वर्ष की लगभग 40% लड़कियां किसी भी शैक्षणिक संस्थान में नहीं जा रही हैं| वहीं कल देश के प्रधानमंत्री महोदय बच्चों को संबोधित करते हुए अधिकार की बात नहीं दायित्व की बात करने को कहते हैं| इससे सपष्ट है कि सरकार बच्चों के अधिकारों को गंभीरता से नहीं लेने वाली|
राज्य में बच्चों के अधिकार लागू हों,उनका सामाजिक समावेशिकरण हो के लिए पूरे राज्य में अभियान चलाकर जनता को जागृत किया जाएगा और सरकार, जनप्रतिनिधियों को आवेदन पत्र के माध्यम से अधिकार प्राप्ति के लिए अभियान 30 जनवरी से चलाया जाएगा|