अल्लाह की रहमतों व बरकतों का महीना – पवित्र रमजान

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Holy Month Ramadan
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इस्लामी कैलेंडर के मुताबिक, पवित्र रमजान का महीना अल्लाह की रहमतों व बरकतों से भरा हुआ है। अल्लाह ने पूरे रमजान महीने के रोजे हर मुसलमान पर फर्ज किए हैं। इस महीने नल का सवाब फर्ज के बराबर व फर्ज का सवाब सत्तर गुना ज्यादा होता है। मान्यता है कि रमजान के महीने में जन्नत के दरवाजे खोल दिए जाते हैं और दोजख के दरवाजे बंद कर दिए जाते हैं। शैतानों को जंजीरों में जकड़ दिया जाता है।

रमजान के बारे में पैगंबर-ए-इस्लाम फरमाते हैं कि अगर इंसान को यह मालूम होता कि रमजान क्या चीज है तो मेरी उम्मत यह तमन्ना करती कि पूरे साल रमजान हो। रमजान महीने का पहला अशरा (दस दिन) रहमत का, दूसरा अशरा मगफिरत व तीसरा अशरा दोजख से आजादी दिलाने का है।

पवित्र रमजान माह में एक ऐसी रात होती है जो हजार महीनों से अफजल है। इसे शब-ए-कद्र की रात कहा जाता है। हदीस में कहा गया है कि शब-ए-कद्र को रमजान माह की आखिरी दस दिनों की ताक रातों 21वीं, 23वीं, 25वीं, 27वीं व 29वीं रात को तलाश करना चाहिए। अधिकांश आलिम 27वीं रब को शब-ए-कद्र मानते हैं। रमजान में रोजदारों को सहरी खाना चाहिए। अल्लाह व उसके फरिश्ते सहरी के खाने वालों पर दुरुद भेजते हैं। रोजा बदन की जकात है। हर मुसलमान रमजान में रोजा रखे और अल्लाह की इबादत करे।

 शाबान के आख़री दिन चाँद देखकर इस मुक्कदस महीने का आगाज़ होता हैं।रमजान के पाक महीने में मुसलमान भाई-बहन दिन भर अपने रब के लिए रोजा रखते हैं और रात को तरावीह अदा करते हैं। बहुत लोगो के मन में रमजान को लेकर कई सवाल आते हैं।  आज हम उन सवालों का जवाब देने की कोशिश करेंगे।

क्यों रखते हैं रोज़ा:
रोज़ा रखकर लोगो को गरीब लोगो की भूख और प्यास का एहसास होता हैं। इस महीने में मुसलमान समाज के लोग बहुत सारा पैसा दान करते हैं जिसे ज़कात कहा जाता हैं। इस महीने में फितरा भी दिया जाता हैं।

रोज़ा रखने के शारीरिक फायदे भी हैं। इससे शरीर डीटोकसीफ़ाय होता हैं। यह वह समय होता हैं जब मुसलमान दुनिया की भागदौड़ से अलग होकर अपने रब से जुड़ते हैं। यह इस्लाम के पांच बुनियादी अरकानो में से एक हैं।

रोजा कैसे रखा जाता हैं:
रमजान के दिनों में मुसलमान समाज के लोग सूरज निकलने से कुछ समय पहले उठकर  खाते हैं, इसे सहरी कहा जाता हैं। सहरी पैगम्बर हज़रात मोहम्मद स.अ.व की सुन्नत हैं और इसे करना ज़रूरी हैं।

सहरी के बाद शाम को सूरज डूबने तक कुछ खाने की अनुमती नहीं होती। इस दौरान पानी भी नहीं पीया जासकता। रोज़े के दौरान पति पत्नी के बीच इंटरकोर्स भी नहीं होसकता हैं। इस दौरान झगड़ा, मार-पीट और चुगली करने की भी अनुमती नहीं होती।

रोज़ा कैसे इफ्तार किया जाता हैं:

दिनभर भूखे प्यासे रहने के बाद शाम को सूर्यास्त के वक्त रोजा इफ्तार करते हैं। इफ्तार करने की एक ख़ास दुआ हैं जिसे पढ़कर रोजा इफ्तार किया जाता हैं। रोजा हमेशा ही खजूर से खोला जाता हैं। अगर खजूर उपलब्ध ना हो तो फिर पानी से इफ्तार किया जा सकता हैं।

इफ्तार करने के तुरंत बाद मगरीब की नमाज़ अदा करनी होती हैं। पुरुष इसे नज़दीक की मस्जीद में अदा करते हैं तो महिलाए अपने घर में। रोजा अल्लाह से जुड़ने का एक रास्ता हैं और इसके ज़रिये अल्लाह से अपनी बात मनवाई जाती हैं।