शब्-ए बरा’अत को अपनी जीवन में क्रांति का जरिया बना लें…

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Namaz
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मुद्दसिर अहमद क़ासमी 
शाबान इस्लामिक क्लेंडर का आठवां महीना है, इस महीने मैं एक रात है जिसे शब्-ए बरा’अत कहते हैं और वो पन्दरह शाबान की रात है। बेशक वे लोग भाग्यशाली हैं जो इस रात को ग़नीमत जान कर नेक कार्य करके उससे लाभ उठाते हैं और रोके गए कार्य से बच कर अल्लाह की तरफ से रहमत के योग्य बन जाते हैं। इसी कारण इस रात को अपनी इबादत से सजाने के लिए हर एक को कड़ी मेहनत करनी चाहिए।
तर्क में किसी विशेष समय का महत्वपूर्ण होना समझ से बाहर नहीं है, क्योंकि हम सांसारिक जीवन मैं भी देखते हैं कि कुछ समय दूसरे समय से अधिक महत्वपूर्ण है। उदाहरण के लिए, अगर किसी को नौकरी की ज़रूरत है, तो वह निश्चित समय पर इंटरव्यू के लिए जाता है और उस वक़्त की सही प्रदर्शन के आधार पर नौकरी पा कर जीवन का आनंद प्राप्त करता है। इसी तरह, यदि कोई शब्-ए बरा’अत के मुबारक समय मैं  इबादत मैं व्यस्त होता है और अल्लाह से अपनी ज़रूरतों को मांगता से है, तो  निश्चित रूप से ये रात उसके लिए खुशीओं का उपहार लाती है।
इस रात के गुण और महत्व के संबंध में कई अहादीस हैं, उनमें से कुछ ये हैं:
हज़रत मुआज इब्न जबल (र अ) पैग़म्बर मुहम्मद (स अ व स ) से एक हदीस बयान करते हैं कि पैग़म्बर  (स अ व स ) ने बताया की:” अल्लाह निस्फ़ (१५ शाबान) शाबान की रात को सभी जीव की तरफ मुतवज्जह होते हैं। और सभी प्राणियों को क्षमा कर देते हैं, मुशरिक (जो अल्लाह के साथ किसी को शरीक करता है) और किना रखने वाले मनुष्य को छोड़कर। ” (पुष्तक सहीह अल-तरग़ीब वल-तर्हिब)
एक और हदीस मैं है, ‘अल्लाह १५ शाबान की रात को अपने बन्दों की तरफ मुतवज्जह होते हैं। और तुबा करने वालों को क्षमा कर देते हैं और उन पर दया करते हैं जो दया मांगते हैं, और दिल मैं किना रखने वालों को अपनी हालत पर छोड़ देते हैं। (अल-जामे अल-सग़ीर)
एक और हदीस मैं है, ‘जब १५ शाबान की रात आती है  तो एक पुकारने वाला पुकारता है—है कोई बख्शीश मांगने वाला की मैं उसे क्षमा कर दूँ?  है कोई सवाल करने वाला की मैं उसके सवाल को पूरा कर दूँ? इस तरह जो भी जो चीज़ मांगता है उसे वो चीज़ मिल जाती है, अल्लाह के साथ किसी को शरीक करने वाले को छोड़ कर। (अल-जामे अल-सग़ीर)
ऊपर वर्णित हदीसों से १५ शाबान की रात के बारे में तीन चीजें विशेष रूप से सामने आती हैं। (१) गुनाहों से क्षमा (२)मांगने पर मिलना और (३) दिल मैं किना रखने पर वंचित होना।
इस लिए हम सब के लिए ये अनिवार्य है की हम सब से पहले अपने दिल से दूसरों के लिए किना निकाल बहार करैं क्योंकि यह एक ऐसी बीमारी है जो न सिर्फ सामाजिक जीवन के लिए घातक है बल्कि हमारे मरने के बाद की जीवन के लिए भी हानिकारक है।
उसके बाद, हमें दूसरे नंबर पर पापों की क्षमा मांगनी है, क्योंकि जीवन के विभिन्न चरणों मैं हमसे ग़लतियाँ और कोताहियाँ हो जाती है, और यदि हम पाप से पाक जीवन बिताने की कोशिश भी करते हैं तो भी अल्लाह ने हम पर हर पल एहसानात की जो वर्षा की है, हम से उनकी शुक्र गुज़री मैं कमी रह जाती है इसलिए अल्लाह को राज़ी और खुश करने के लिए हमारे लिए माफी मांगने का सहारा लेना अनिवार्य है।
फिर, तीसरे चरण में, हम अल्लाह से अपनी सभी धार्मिक और सांसारिक जरूरतों को मांगें क्योंकि यह अल्लाह  की तरफ से मिलने का एक विशेष अवसर है। इस मुके से हम केवल खुद के लिए नहीं मांगें, बल्कि अपने सभी भाइयों और बहनों के लिए उनकी जायज़ ज़रूरियात और शांति मांगें। दोसराओं के लिए मांग करने का एक और फ़ायदाः है, और वह यह की फरिश्ता अल्लाह से कहता है कि वह अपने भाई के लिए मांग कर रहा है, उसके लिए भी इस मांग को स्वीकार करें।
शाबान की पंद्रहवीं रात में करने के इन महत्वपूर्ण कार्यों के अलावा, हमें ग़लत व्यवहार और रीति-रिवाजों से बचना चाहिए, क्योंकि इस से केवल हमारे अच्छे कार्य ही बर्बाद नहीं होते, बल्कि पापों का एक बोझ भी हमारे सिर पर आता है।  याद रखये! इस्लाम जीवन बिताने की एक खूबसूरत प्रणाली है जिसके पालन से हमरे मरने के बाद की ज़िन्दगी भी सुंदर हो जाती है।

(लेखक मरकज़ुल मआरिफ़ एजुकेशन एंड रिसर्च सेण्टर मुम्बई मैं लेक्चरर, उर्दू दैनिक इन्किलाब के कोलुमनिस्ट और ‘ईस्टर्न क्रिसेंट‘ मैगज़ीन के असिस्टेंट एडिटर हैं।)