ओवैसी ने कहा, ‘यह भाजपा के लिए एक वेक-अप कॉल है, आप हर बार प्रधानमंत्री मोदी की लोकप्रियता पर जीत हासिल नहीं कर सकते।’ उन्होंने प्रधानमंत्री ने हरियाणा में 12-15 रैलियां की बात सामने रखते हुए कहा कि बावजूद इसके उन्हें अपेक्षित परिणाम नहीं मिले। इसलिए चीजें बदल रही हैं।
महाराष्ट्र में बीजेपी शिवसेना सरकार की वापसी हुई लेकिन कमजोर होकर और हरियाणा में बीजेपी को बहुमत नहीं मिल पाया.राज्यों में बीजेपी अजेय नहीं है. दिल्ली में हो सकती है और वो एक व्यक्ति नरेंद्र मोदी की वजह से है. यानी राष्ट्रीय स्तर पर बीजेपी का जीत का फॉर्मूला राज्य स्तर पर काम नहीं करता.जनता के मुद्दे अलग हैं और बीजेपी जो पैकेज बेचती है वो हर बार हर जगह बिके ये जरूरी नहीं है.
महाराष्ट्र में बीजेपी-सेना का वोट शेयर 4% गिरा है. ये 47% से 43% पर पहुंच गया लेकिन लोकसभा चुनाव 2019 के मुकाबले ये गिरावट 7% की है. हरियाणा में बीजेपी को बहुमत नहीं मिला लेकिन वोट शेयर 3% बढ़ा है. अगर लोकसभा चुनाव 2019 से तुलना करें तो वोट शेयर 22% गिरा है.बीजेपी का इम्पोर्ट मॉडल रिस्की है . दूसरी पार्टियों से नेता और कैंडिडट इम्पोर्ट कर के जीतने की बीजेपी की रणनीति जीत की गारंटी नहीं देती. उलटे बीजेपी सेना के कई बागी जीत कर आ गए.
बीजेपी के लिए मराठा वोट को खींचना एक बड़ा प्रोजेक्ट था. वो सफल नहीं हुआ. शरद पवार अपने बूते अपना मराठा जनधार बचाने में सफल रहे. ये उनके करियर की सबसे मुश्किल लड़ाई थी. अकेले लड़े. उन्होंने कांग्रेस को भी इज्जत बचाने जितना सहारा दिया. कांग्रेस-एनसीपी ने 2014 के मुकाबले ज्यादा सीटें जीती हैं. लेकिन बड़ा फायदा एनसीपी का है, उसने एक दर्जन से ज्यादा नयी सीटें जीतीं हैं.
सत्तारूढ़ दल का दोबारा जीतना अपने आप में एक उपलब्धि है, ये मानना चाहिए. फिर भी ये नतीजे बताते हैं कि बीजेपी के मुख्यमंत्री प्रो इंकम्बेन्सी मोड में हैं, ये एक मिथ था. बीजेपी ने महाराष्ट्र में 2014 के मुकाबले करीब दो दर्जन सीटें खोयी हैं. शिवसेना की सीटें भी घटी हैं.
बीजेपी का अरमान था कि वो शिवसेना के भरोसे ना रहे. ये अरमान भी टूटा. शिवसेना पूरे 5 साल सहयोगी होने के बावजूद बीजेपी को आंख दिखाती रही. अब जो आंकड़े बने हैं, उसमें बीजेपी को सेना का दबाव झेलते रहना पड़ेगा.अपने विरोधियों के खिलाफ ED और CBI लाने का फॉर्मूला भी फेल हुआ है. शरद पवार तो ED कॉर्ड का फायदा उठा गए और हुड्डा का भी पॉलिटिकल रिवाइवल हो गया.
बीजेपी ने हरियाणा में गैर जाट मुख्यमंत्री रखा. जाटों को आरक्षण नहीं दिया. जाट आंदोलन के कई नेता अब भी जेल में हैं. उधर मराठा आरक्षण देकर भी बीजेपी मराठा मन को नहीं जीत पायी. यहां बीजेपी की रणनीति को बड़ा झटका लगा है. बीजेपी की कोशिश थी कि पहले अन्य पिछड़ी जातियों का सामाजिक गठजोड़ बनाए, और मराठा जाट जैसी बड़ी ताकतवर जातियों को पहले नजरअंदाज करे और बाद में लुभाए. ये फेल हुआ है.सबसे बड़ा आउटकम ये है कि भारत का संघीय मानस किसी एक प्रभावी राजनीतिक छतरी में जाने को तैयार नहीं है. इन चुनावों में संघीय ढांचा फिर से फलता-फूलता दिख रहा है, जो भारतीय लोकतंत्र की जान हैं