Can Sonia Gandhi bring back good days for dying Congress?

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By Abdul hafiz lakhani        नई दिल्ली।  siyasat.net

सोनिया के कंधे पर कांग्रेस को उबारने की जिम्मेदारी, संगठन को इकट्ठा करना  लिए बड़ी चुनौती होगा

अब पार्टी के कोषाध्यक्ष रहे अहमद पटेल के कार्यालय, आवास की रौनक बढ़ गई है।  

एक बार फिर से कांग्रेस पार्टी की कमान संभालने के बाद सोनिया गांधी ने संगठन को दुरुस्त करना शुरू कर दिया है। जानकारी के मुताबिक सोनिया गांधी अब कांग्रेस में अब ‘एक व्यक्ति-एक पद’ का सिद्धांत कड़ाई से लागू करने की तैयारी कर रही हैं. वैसे तो पार्टी इस सिद्धांत का पालन कर रही है, लेकिन अपवाद के तौर पर पार्टी में कुछ नेताओं पर एक से ज्यादा ज़िम्मेदारियां हैं.
कांग्रेस ने ऐसे समय में सोनिया को अंतरिम अध्यक्ष की जिम्मेदारी सौंपी है, जब पार्टी अपने सबसे मुश्किल दौरे में है। सोनिया गांधी इससे पहले 14 मार्च, 1998 से 16 दिसंबर, 2017 तक कांग्रेस अध्यक्ष रह चुकी हैं और उनके अध्यक्ष रहते 2004 से 2014 तक पार्टी केंद्र में सत्तासीन रही। सोनिया गांधी को अंतरिम अध्यक्ष बनाने का कदम युवा और अनुभवी नेताओं के बीच सामंजस्य बनाते हुए पार्टी को आगे ले जाने की रणनीति के तहत उठाया गया है।
कांग्रेस पार्टी की अंतरिम अध्यक्ष बनते ही सोनिया गांधी ने पहला बड़ा और सख्त फैसला किया है। सोनिया गांधी ने पार्टी नेताओं से कार्यसमिति की बैठक में मोबाइल फोन लेकर नहीं लेकर आऩे को कहा है। 10 अगस्त की रात को कांग्रेस नेताओं ने सोनिया गांधी को पार्टी का अंतरिम अध्यक्ष चुना था, अंतरिम अध्यक्ष चुने जाने के बाद सोनिया गांधी ने सबसे पहला कदम पार्टी में अनुशासन सुधारने को लेकर लिया है और यही वजह है कि कार्यसमिति की बैठकों में मोबाइल फोन बंद कर दिए गए हैं।पार्टी के पूर्व महासचिवों ने दस जनपथ तक अपना बधाई संदेश भिजवाया है और यूपीए चेयरपर्सन, कांग्रेस की अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी से मिलने का समय मांग रहे हैं। दस जनपथ के सूत्र बताते हैं कि टेलीफोन की घंटी लगातार व्यस्त जा रही है। देश के कोने-कोने से नेताओं के फोन आने शुरू हो गए हैं।  एक वरिष्ठ नेता की मानें तो अब कांग्रेस के भीतर जान आ जाएगी। सोनिया गांधी सब संभाल लेंगी।

सोनिया गांधी के आवास के साथ-साथ उनके कभी राजनीतिक सचिव और अब पार्टी के कोषाध्यक्ष रहे अहमद पटेल के कार्यालय, आवास की रौनक बढ़ गई है। राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री कमलनाथ की टीम भी खुश है। सबको लग रहा है कि हताशा, निराशा की अवस्था में पहुंची कांग्रेस पार्टी आगामी विधानसभा चुनाव में भाजपा को राजनीतिक जवाब देने की स्थिति में आ जाएगी। पार्टी के नेताओं के भीतर बढ़ रहे इस आत्मविश्वास का कारण सोनिया गांधी और उनकी टीम की राजनीतिक शैली है।
प्रयागराज से संघ के नेता ज्ञानेश्वर शुक्ला को लग रहा है कि सोनिया गांधी कांग्रेस पार्टी को राहुल गांधी से ज्यादा अच्छी तरह से चलाएंगी। पश्चिम बंगाल में भाजपा और संघ के एजेंडे पर काम कर रहे एसएम शुक्ला का कहना है कि सोनिया गांधी का राजनीतिक व्यवहार भी परिपक्वता से भरा होता है। राहुल गांधी इस मामले में पिछड़ जाते हैं। सोनिया ही कांग्रेस को संभाल सकती हैं।
दिल्ली के पूर्व भाजपा सांसद ऑफ द रिकार्ड कहते हैं कि सोनिया गांधी के कमान संभालने से कांग्रेस को लाभ होगा। वरिष्ठ पत्रकार हर्षवर्धन त्रिपाठी का भी मानना है कि सोनिया गांधी के अध्यक्ष बनने का लाभ कांग्रेस को मिलेगा। सभी का मानना है कि जिस दौर से कांग्रेस गुजर रही है, इसमें उसके पास सोनिया गांधी के अलावा कोई दूसरा चेहरा नहीं है।
वहीं, आयकर विभाग के पूर्व कमिश्नर धनेश कपूर का मानना है कि नेहरू-गांधी परिवार के अलावा कांग्रेस पार्टी को संभालने वाला कोई दूसरा नजर नहीं  आता। धनेश कपूर का अनुमान है कि सोनिया गांधी पॉवर शिफ्ट करने के लिए पार्टी की अंतरिम अध्यक्ष बनी हैं। उनका कहना है कि जल्द ही भाजपा की तरह कांग्रेस पार्टी भी चुनाव प्रक्रिया से गुजरेगी। इसमें अध्यक्ष पद के प्रियंका गांधी वाड्रा आगे आ सकती हैं।धनेश कपूर इसकी वजह उत्तर प्रदेश में भाजपा के खिलाफ कांग्रेस की राजनीतिक लड़ाई और प्रियंका की राजनीतिक सूझबूझ को बताते हैं। धनेश की इस राय से बीएसईएस पॉवर कॉरपोरेशन के इंजीनियर डीके सिंह भी इत्तेफाक रखते हैं। दिल्ली प्रदेश कांग्रेस के एक उपाध्यक्ष का कहना है कि वह सोनिया गांधी के पद संभालने से उत्साहित हैं, लेकिन कांग्रेस पार्टी के पास अध्यक्ष पद के लिए प्रियंका गांधी वाड्रा से अच्छा दूसरा नेता नहीं है।सोनिया गांधी को आने वाले दिनों में कांग्रेस पार्टी के लिए कई अहम फैसले करने हैं, पार्टी में गुटबाजी को खत्म करना और सहयोगी दलों के साथ तालमेल बिठाना सोनिया गांधी के लिए मुश्किल चुनौती साबित हो सकता है।आने वाले दिनों में दिल्ली, झारखंड, हरियाणा, महाराष्ट्र में चुनाव होने हैं। लोकसभा चुनावों में हार के बाद देशभर में कांग्रेस कार्यकर्ताओं में फिर से जोश भरकर उन्हें विधानसबा चुनावों में पूरी ताकत झोकने के लिए तैयार करना भी सोनिया गांधी के लिए बड़ी चुनौती हो सकता है।

पार्टी के कई बड़े नेता और पदाधिकारी पार्टी छोड़कर दूसरे दलों में शामिल हो गए हैं। कांग्रेस में संगठनात्कम तौर पर प्रदेश स्तर के कई पद खाली पड़े हैं, ऐसे में उन पदों पर नए चेहरों की नियुक्ती को लेकर भी सोनिया गांधी को ही फैसला करना है। दिल्ली और झारखंड में चुनाव हैं और इन दोनो ही जगहों पर कांग्रेस पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष की कुर्सी खाली पड़ी हुई है, ऐसे में सोनिया गांधी आने वाले दिनों में इन दोनो जगहों के लिए प्रदेश अध्यक्ष के नाम पर मुहर लगा सकती हैं।
हरियाणा में भी जल्द चुनाव होने वाले हैं लेकिन वहां पर पार्टी में अंदरूनी कलह बढ़ती जा रही है, चुनावों से पहले हरियाणा में संगठन को इकट्ठा करना सोनिया गांधी के लिए बड़ी चुनौती होगा। महाराष्ट्र में विधानसभा चुनावों से पहले राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के साथ मिलकर लड़ना और सीटों का बटवारा करना भी सोनिया गांधी को ही देखना है।