इंसान और इंसानियत

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मरते थे इंसान कभी पर, अब मर रही है इंसानियत,

पैसे सत्ता और ताकत के लालच में आ गई है, हैवानियत

धर्म और मज़हब का ढोल बजा के लहू लुहान किया इंसानों को,

जाति, धर्म का लालच देके झोंक दिया इंसानियत को,

मार दिया उस प्यार को और उसके प्यारे एहसास को,

जप रहा है जाप बस “मैं” शब्द के नाम को,

दया की भावना तो चली गई, ना ही अपनों का अब दर्द रहा,

देख ख़ुशी दूसरों की आज का इंसान क्यों जल रहा,

कैसा युग है, और क्या समय की मार है, प्यारे

इंसान इंसान को डस रहा और साँप बैठकर रो रहा।।

इंसानियत यानी मानवता, फिर चाहे वो किसी भी देश का हो, किसी भी जाति का हो या फिर किसी भी शहर का हो सबका एकमात्र प्रथम उद्देश्य एक अच्छा इंसान बनने का होना चाहिए। हर किसी इंसान के रंग रूप, सूरत, शारीरिक बनावट, रहन-सहन, सोच-विचार और भाषा आदि में समानतायें भी होती हैं और असमानताएं भी होती हैं मनुष्य का कर्त्तव्य है कि वह समाज में सभी लोगो के प्रति मानवता दिखाए। आजकल लोग आत्मीयता और मानवता जैसे भावनाओ से दूर होते जा रहे है। मनुष्य को दूसरो के प्रति दया भाव रखनी चाहिए। तभी एक सकारात्मक जीवन लोग जी सकते है। इंसानियत वही होती है जिसमे मनुष्य खुद के लिए नहीं बल्कि औरों के हित के विषय में सोचते है। इंसान जब जाता है तो किसी भी तरह का वस्तु या पैसे अपने संग लेकर नहीं जाता है। संसार में मनुष्य को अपने बड़ो से अच्छा बर्ताव करना चाहिए। बड़ो का सम्मान और छोटो से प्यार करना चाहिए। दूसरो की सहायता करना इंसानियत कहलाता है। मनुष्य समाज में रह रहे लोगो की मदद करके अपनापन जता सकते है। ऐसे उदाहरणों से मानवता का परिचय मिलता है। जिन्दगी में बेबस लोगो की सहायता करके, हम अपने मन में संतुष्टि ला सकते है और इंसानियत को जगा सकते है। सफल जीवन और सभ्य समाज के निर्माण के लिए मानवता की ज़रूरत है। अगर रास्ते में कोई आदमी जख्मी हालत में पड़ा है तो उसे तुरंत अस्पताल में दाखिल करवाना मानवता की पहचान है। मानवता जताने के लिए गरीब भूखे इंसान को खाना खिलाया जाता है। अगर कोई वृद्ध इंसान रास्ता पार नहीं कर पा रहा है तो उसे सड़क पार करवा सकते है। जीवन में बहुत लोगो के पास धन और पैसे होते है। उससे वह गरीब और बेसहारा लोगो की मदद कर सकते है। लोगो को दुनिया में मानवता व्यक्त करने के लिए नेक काम करने चाहिए, ताकि लोग उन्हें याद रखे। मानवता तो धीरे धीरे ख़त्म होती जा रही है।आजकल के इस औद्योगिक जगत में लोग काफी व्यस्त रहते है। यह कहना ना गलत होगा कि लोग तेज़ी से सफलता और उन्नति पाना चाहते है। उनमे भावनाओ की कमी देखी जा सकती है। वह स्वार्थी बन गए है। उनमे जैसे मानवता और इंसानियत खत्म हो गयी है। पैसे कमाने के अलावा उन्हें कुछ और नज़र नहीं आता है। यही वो इंसान है जो अब सिर्फ ‘मैं’ शब्द में ही उलझकर रह गया है और इसी में जीना चाहता है। हाल के दिनों में ऐसी कुछ घटनाएं सामने आई हैं, जिन्हें देखकर प्रतीत होता है कि ‘मरते हैं इंसान भी और अब मर रही है, इंसानियत’। कुछ घटनाओं को देखें तो लगेगा कि इंसानियत तार तार हो रही है।

यदि सभी मनुष्य मानवता धर्म को अपना लें और भाईचारा से रहे तो किसी भी मनुष्य के लिए उसका जीवन बोझ नहीं होगा, किसी भी मनुष्य जीवन में दुख नहीं रहेगा, किसी भी देश में झगड़ा नहीं होगा। लेकिन यह तभी संभव है जब व्यक्ति अपने अंदर इंसानियत की भावना को जागरूक करेगा। मानवता मनुष्य को मिल जुल कर रहना सिखाती है। मानवता से ही मनुष्य का जीवन अस्तित्व में रह सकता है। इसीलिए जरूरी है कि हर एक व्यक्ति मानवता को अपनाएं औश्र चारों तरफ शांति फैलाएं।