मौलाना तौकीर रजा खान का बड़ा बयान: भाजपा और ओवैसी की बीच यूपी चुनाव के लिए अंदरुनी समझोता

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भारतीय जनता पार्टी (BJP) की उत्तर प्रदेश में चुनावी रणनीति के कई अहम हिस्से हैं, जिनमें एक है राज्य के 19 फीसदी मुस्लिम मतदाताओं को कन्फ्यूज रखना
By Abdulhafiz Lakhani
 

उत्तर प्रदेश में चुनाव का माहौल धीरे धीरे गर्मी पकड़ता जा रहा है। मुस्लिम वोट पर सब पार्टियों की नजर है, ऐसे में थोड़े दिन पहले ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के भूतपूर्व सदस्य और लखनऊ स्थित दारुल उलूम नदवतुल उलेमा के फैकल्टी मेम्बर मौलाना सैयद सलमान हुसैनी नदवी ने ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड को दो बार वीडियो जारी करके बोर्ड को यूपी में मुसलमान ऑल इंडिया मजलिस ए इत्तेहादुल मुस्लिमीन (AIMIM) को वोट दे ऐसी अपील जारी करने को कहा था।

अब उनके सामने बरेलवी उलेमा,और इत्तेहाद ए मिल्लत काउंसिल (आइएमसी) के मुखिया मौलाना तौकीर रजा खान ने गंभीर आरोप लगाते कहा है कि owaisi की पार्टी और भाजपा के बीच अंदरुनी समझोता हुआ है। उन्हों ने आगे कहा के, उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और मिम के रूहेरवा के बीच ये गुप्त अलायंस से यूपी में बीजेपी को बड़ा फायदा हो सकता है।

उन्हों ने कहा,के एक समय में मौलाना सलमान नदवी ने owaisi को बीजेपी का एजेंट बताया था, अब वो मीम को वोट देने की अपील की बात कर रहे है, ये अपने आप में बहुत बड़ा सवाल खड़ा करता है। मीम को वोट याने बीजेपी सीधा फायदा ये बात क्या वो भूल गए?

तौकीर रजा जाने माने मुस्लिम उलेमा हो और इत्तेहाद ए मिल्लत काउंसिल (आइएमसी) नाम की सियासी पार्टी चला रहे है। वो बरेलवी और आसपास के इलाकों में अच्छा असर रखते है।

इत्तिहाद ए मिल्ल्त काउंसिल (आईएमसी) के राष्ट्रीय अध्यक्ष और आला हजरत परिवार के सदस्य मौलाना तौकीर रजा खान ने इतना ही नहीं उन्होंने समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी को भी निशाने पर लिया है. तौकीर रजा ने कहा कि सपा और बसपा समेत सभी कथित सेक्युलर दल आरएसएस के एजेंडे पर कार्य कर रहे हैं.

राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि ओवैसी राजनीतिक तौर पर महत्वकांक्षी हैं। मीडिया की सुर्खियों में रहने से ओवैसी को राजनीतिक फायदा मिलता है। इससे तेलंगाना में उनकी स्थिति और मजबूत होती है। दूसरी पार्टियों की तवज्जो भी उनका काम आसान करती हैं। वह मानतें हैं कि ओवैसी पर भाजपा का अक्रामक रुख चौंकाता है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने ओवैसी को बड़ा और जनाधार वाला नेता बताकर चैलेंज स्वीकार कर उन्हें एक बड़े नेता के तौर पर स्थापित कर दिया है। जाहिर है, भाजपा को इससे फायदा मिल सकता है।

भाजपा सांसद साक्षी महाराज कह चुके हैं कि एआईएमआईएम की मौजूदगी का भाजपा को बिहार में लाभ मिला। यूपी में भी इसका फायदा मिलेगा। यही वजह है कि सपा, कांग्रेस और दूसरी पार्टियां एआईएमआईएम को चुनाव में भाजपा की बी टीम बता रहे हैं। ओवैसी को तेलंगाना से बाहर पहली कामयाबी महाराष्ट्र में मिली। वर्ष 2019 के चुनाव में वह एक सीट जीतने में सफल रही। लोकसभा में एआईएमआईएम के अब दो सांसद हैं।

पार्टी के एक नेता कहते हैं कि हम आरोपों के डर से घर बैठ जाते, तो सिर्फ हैदराबाद तक रहते। एआईएमआईएम का कहना है कि बिहार चुनाव में भी हम पर इस तरह के आरोप लगे थे, पर हमें खुद को साबित किया। वर्ष 2015 के चुनाव में 6 सीट पर चुनाव लड़ा था और पांच पर जमानत जब्त हो गई थी। वर्ष 2020 में 20 मुस्लिम बहुल सीट पर चुनाव लड़ा और पांच जीती। हालांकि, इसकी वजह से राजद-कांग्रेस 20 सीट हार गई।

यूपी में भी ओवैसी 2017 के चुनाव में किस्मत आजमा चुके हैं। वह 38 सीट पर चुनाव लड़े और 37 पर जमानत जब्त हुई थी। करीब ढाई फीसदी वोट मिले थे। लिहाजा, पार्टी चुनाव में कुछ सीट पर बेहतर प्रदर्शन करने में सफल रहती है, तो पश्चिम बंगाल में हार के दाग भी धुल जाएंगे।

भारतीय जनता पार्टी (BJP) की उत्तर प्रदेश में चुनावी रणनीति के कई अहम हिस्से हैं, जिनमें एक है राज्य के 19 फीसदी मुस्लिम मतदाताओं को कन्फ्यूज रखना. बीजेपी इस लिहाज से AIMIM अध्यक्ष और लोकसभा सांसद असदुद्दीन ओवैसी को बड़ा नेता बताने लगी है, लेकिन एंटी बीजेपी वोट करने वाले मुस्लिम क्या वो गलती करेंगे जो उन्होंने साल 2017 में कर दिया था.

बीजेपी योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व में चुनाव लड़ेगी, ये साफ हो चुका है. इसलिए बीजेपी के लिए साल 2017 का परफॉरमेंस दोहराना बड़ी चुनौती है. ओवैसी और ब्राह्मणों को साथ रखने में बीजेपी किस हद तक कामयाब होगी इस पर चुनाव परिणाम बहुत हद तक निर्भर करेगा. यही वजह है कि बीजेपी ने केशव प्रसाद मौर्य और योगी आदित्यनाथ के बीच सुलह करा जनता को उनके एकजुट रहने का मैसेज दिया है. लेकिन विपक्ष के वोटों के बंटवारे के लिए बीजेपी ने पासा फेंकना शुरू कर दिया है.

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