पटेल के निधन के बाद उनकी जगह कौन लेगा? वह कौन होगा जिसपर गांधी परिवार आंख मूंदकर विश्वास कर पाएगा जैसा पटेल पर करता था।
पहले से ही मझधार में फंसी कांग्रेस से एक बड़ी पतवार छिन गई है। अहमद पटेल का गुजर जाना न सिर्फ पार्टी के लिए झटका है, बल्कि उसे कंट्रोल करने वाले गांधी परिवार का तो जैसे दाहिना हाथ ही चला गया। कांग्रेस में पिछले चार दशक में जब भी संकट आया, गांधी परिवार ने पटेल का रुख किया। पटेल लाइमलाइट से दूर रहकर अपना काम करते रहते थे। एक तरह से अहमद पटेल के जरिए ही गांधी परिवार का पार्टी नेताओं से राब्ता होता था। वह लंबे समय से पार्टी और गांधी परिवार के बीच की कड़ी बने रहे।
कांग्रेस के लिए पिछले कुछ साल किसी बुरे सपने की तरह रहे हैं। पार्टी लगातार दो लोकसभा चुनाव हारी। कई राज्यों में भी सत्ता चली गई। कैडर का उत्साह फीका पड़ा हुआ है। रही-सही कसर हालिया बिहार चुनाव के नतीजों ने पूरी कर दी। नेतृत्व पर कई वरष्ठि नेताओं ने सवाल उठाए हैं। पार्टी के पास सालभर से स्थायी अध्यक्ष तक नहीं है। चुनौतियां इतनी भर नहीं, पार्टी में अंदरूनी कलह बढ़ती ही जा रही है। खेमेबाजी इतनी ज्यादा हो गई है कि पार्टी टूटने तक की आशंका व्यक्त की जा रही है। कई वरिष्ठ नेताओं ने पार्टी में एक प्रभावी मैनेजर की कमी बताई है, अहमद पटेल जैसे। इसी बहाने वे अपनी दावेदारी पेश कर रहे हैं। कांग्रेस में कई नेता ऐसे हैं जो गांधी परिवार के बाद पार्टी में नंबर 2 बनना चाहते हैं या हो सकते हैं।
खास रणनीतिकारों में केसी वेणुगोपाल का नाम शुमार होता है। वह संगठन में महासचिव की जिम्मेदारी संभालते हैं और यूपीए सरकार में राज्य मंत्री रह चुके हैं। राहुल गांधी से वेणुगोपाल की नजदीकियां उन्हें अहमद पटेल की जगह लेने में मदद कर सकती हैं। हालांकि केरल से ताल्लुक रखने वाले वेणुगोपाल अपने ही राज्य में गुटबाजी का शिकार हो सकते हैं। वह 2009 और 2014 में अलापुझा सीट से लोकसभा चुनाव जीते थे मगर 2019 में लड़े नहीं। इसके बाद राहुल गांधी ने उन्हें राजस्थान से राज्यसभा भिजवा दिया। राहुल के साथ वेणुगोपाल के समीकरण पार्टी में उनका कद अब और बढ़ा सकते हैं।
पी चिदंबरम भी कांग्रेस संगठन की स्थिति पर सवाल उठा चुके हैं। हालांकि पूर्व केंद्रीय मंत्री के पास लंबा-चौड़ा अनुभव है और वे राजनीतिक दावपेंच को बखूबी समझते हैं। राज्यसभा में चिदंबरम कांग्रेस के सबसे अहम नेताओं में से एक हैं। हालांकि उनके ऊपर कई तरह के भ्रष्टाचार के आरोप हैं जो उनके खिलाफ जा सकते हैं।
मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ और राजस्थान सीएम अशोक गहलोत की गांधी परिवार से नजदीकियां किसी से छिपी नहीं। अभी जब सिब्बल का कांग्रेस नेतृत्व पर सवाल उठाता इंटरव्यू आया था, तब इन दोनों नेताओं ने खुलकर गांधी परिवार की वकालत की थी। गहलोत का लहजा तो बेहद तल्ख था। दोनों कई दशकों से गांधी परिवार के करीबी रहे हैं और अहमद पटेल के बाद उनकी जगह लेने के मजबूत दावेदार हैं।
केरल के तिरुवनंतपुरम से लोकसभा सांसद शशि थरूर भी गांधी परिवार का राइट हैंड बन सकते हैं। एक पूर्व डिप्लोमेट के रूप में उन्हें राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय विषयों की गहरी समझ तो है ही, बात को रखने का ढंग भी अलग है। थरूर के राजनीतिक कौशल की परख अभी बाकी है मगर वे युवाओं में लोकप्रिय हैं और कई बार उन्हें प्रधानमंत्री पद का दावेदार बनाने की मांग भी हो चुकी है। थरूर के गांधी परिवार से रिश्ते भी अच्छे हैं लेकिन संगठन पर उनकी कमजोर पकड़ उनकी दावेदारी कमजोर करती है।
दिग्विजयसिंह उन नेताओं में से हैं जिन्हें शासन और संगठन, दोनों का लंबा अनुभव है। वह एक वक्त में गांधी परिवार के सबसे भरोसेमंद सलाहकारों में शामिल हुआ करते थे लेकिन टीम राहुल में उनकी पोजिशन थोड़ी कमजोर है।